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अंश तुम्हारा / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
Kavita Kosh से
241
दो पल मिलें
सुकून है बिटिया
मन की ज्योति
242
दो पल मौन
उड़ गया पखेरू
पूछता कौन।
243
मेरी आँखों में
तुम ही हरदम
रूप-अनूप ।
244
खिली धूप -सा
निखरा मधु रूप ,
खिले नयन ।
245
गहरी नदी
जितना डूबे हम
उतना पाए !
246
किनारे टूटे
उमड़ती लहरें
ज़रा ठहरें !
247
साँझ-सकारे
करना उजियारे
सबके द्वारे ।
248
चुप्पी की कीलें
गड़ी मन भीतर
निकलें नहीं।
249
चुप्पी जो तोड़ी
टूट गए थे रिश्ते
उम्र भर के ।
250
जग को जाना-
कागज़ की नाव से
सिन्धु तरना।
251
अंश तुम्हारा
तुमको घटाया तो
कुछ न बचा ।
252
पूर्ण हो तुम
मुझको घटा दोगे
फिर भी पूरे ।
253
छोटे ये पल
दिल में यूँ उतरे
भुला न सके ।
254
हाथों का रंग
पाकर शहतूत
हो गए दंग ।
255
रस भी पाया
पावन हाथों का ज्यों
परस मिला।