अइया के गुजरते ही
अकेले पड़ गए बाबा
घर ने निरा अकेल।
पांच-पांच बेटों केबाप
बाबा इतना अकेल
पहले तो कभी नहीं हुए
जब तक थीं अइया-
बाबा कहते
‘घर का भीतरला पोढ़ हो तो
बाहर की दुनिया से जूझते
जीनहीं घबराता।’
अइया संभालती थी
घर का भीतरला मोर्चा:
सबसे तगड़ा मोर्चा
पांच-पांच बेटों की बहुओं का मोर्चा
संभालती थी अइया
जब तक रही-
अब कुछभी अच्छा नहीं लगता!
क्या मजाल
घर की दीवार की
एक भी ईंट पर पड़ जाए
किसी की कुमति की खरोंच भी।
अइया के सिधारते ही
टूटी बहुओं की नाथ
बेटे संभाल नहीं पाए-
‘तिरिया चरित्तर’,
बाबा समझाते भी बेटो को
तो पाते गाली और घुड़क
घर से निकाल दिए जाने की।
इस तरह
शुरू हुई हिलनी दीवारें
घर की नींव-
देखते-देखते
भरी-पूरी बखरी के
हुई कई टुकड़े।
बुढ़ापे में
अपनी भडरी
खुद लगानी पड़ी बाबा को
अइया के गुजर जाने के बाद।