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अइसन बहे बयार देस के / रामनरेश वर्मा

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अइसन बहे बयार देस के कोना-कोना धमक उठे॥
मेहनत के महिमा सब जाने धरती उगिले सोना।
सबक अवसर मिले बरोबर, पडे़ न केकरो रोना।
कार-गोर के भेद भूल हर भारतवासी चमक उठे॥
अइसन बहे बयार देस के कोना-कोना धमक उठे॥
गौतम-गाँधी के सन्देसा फिर से सगरो फैले।
खुले आँख के पट्टर आगे मउवत हे मुँह बैले।
टले युद्ध ई घड़ी में आग कहीं न बमक उठे॥
अइसन बहे बयार देस के कोना-कोना धमक उठे॥
बेअसरा के बादर फाटे, आस लत्तर लहराये,
घर-घर गूंजे गीत खुसी के, सान्ति धजा फहराये।
आँख उठावे में दुस्मन के माथा हरदम भनक उठे॥
अइसन बहे बयार देस के कोना-कोना धमक उठे॥
बदल जाय मनभाव समूचा, पलट जाय फिन पासा।
देस उन्नति करते जाय, रहे न केकरो आसा।
रामराज आवे कान्हा के पाँव पैजनी झनक उठे॥
अइसन बहे बयार देस के कोना-कोना धमक उठे॥