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अइसहीं बितइहों कि चितइहों चित लाई के / महेन्द्र मिश्र

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अइसहीं बितइहों कि चितइहों चित लाई के।
नाथ हो अनाथन के तू बइठे हो भुलाई के।
होइहें बदनामी तोहे कपटी कहाई के।
कूबड़ी फँसाई तोहे चन्दनल लगाई के।
सेबरी के भगती देलऽ जूठे बइर खाई के।
ले गइलें रावण जब जानकी चोराई के।
घर में तू दरसन देलऽ सत्रुता बढ़ाई के।
महेन्द्र निहारे अबतऽ सुरती लगाइ के।
हमरो के दरसन दीहऽ घरहीं बोलाई के।