भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अकड़ ज़रा-सी भी दरिया अगर दिखाएगा / के. पी. अनमोल
Kavita Kosh से
अकड़ ज़रा-सी भी दरिया अगर दिखाएगा
मुझे यक़ीन है वो प्यासा लौट जाएगा
मुझे यक़ीन है वो प्यासा लौट जाएगा
वो अपनी प्यास को ऐसे नहीं बुझाएगा
वो अपनी प्यास को ऐसे नहीं बुझाएगा
तमाम पानी को प्यासा ही छोड़ जाएगा
तमाम पानी को प्यासा ही छोड़ जाएगा
तो दरिया कैसे भला ख़ुद को मुँह दिखाएगा
तो दरिया कैसे भला ख़ुद को मुँह दिखाएगा
अना को अपनी अगर चूर, चूर पाएगा
अना को अपनी अगर चूर, चूर पाया तो
सिमट के ख़ुद में ही 'अनमोल' डूब जाएगा