अक़्ल वाले क्या समझ सकते हैं दीवाने की बात / रतन पंडोरवी
अक़्ल वाले क्या समझ सकते हैं दीवाने की बात
अहले-गुलशन को कहां मालूम वीराने की बात।
इस क़दर दिलकश कहां होती है फर्जाने की बात
बात में करती है पैदा बात दीवाने की बात।
बात जब तय हो चुकी तो बात का मतलब ही क्या
बात में फिर बात करना है मुकर जाने की बात।
इसका ये मतलब क़ियामत अब दुबारा आएगी
कह गए हैं बातों-बातों में वो फिर आने की बात।
बात पहले ही न बन पाये तो वो बात और है
सख़्त हसरत नाक है बन कर बिगड़ जाने की बात।
दास्ताने-इश्क़ सुन कर हम पे ये उक़्दा खुला
दर हक़ीक़त इश्क़ है बे-मौत मर जाने की बात।
अब्र छाया है चमन है और साक़ी भी करीम
ऐसे आलम में न क्यों बन जाये पैमाने की बात।
इसमें भी कुछ बात है वो बात तक करते नहीं
सुन के लोगों की ज़बानी मेरे मर जाने की बात।
बात का ये हुस्न है दिल में उतर जाये 'रतन'
क्यों सुनाता है हमें दिल से उतर जाने की बात।