भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अकाल नेह का / मधु आचार्य 'आशावादी'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

उससे था
नेह का रिस्ता
शत प्रतिशत सच्चा
किंतु बात-बात पर देनी
होती थी सफाई
इससे रिस्ते में
बड़ी भारी आंच आई
जैसे नेह में मिल गई हो रेत
मिलती जा रही हो रेत
फिर कैसे जिंदा रह सकता है-
रिस्तों में प्रेम
आज के इस युग में
रिस्तों में गिर चुकी है रेत
जीवन में आ बैठा है-
नेह का अकाल।

अनुवाद : नीरज दइया