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अकाल / कालीकान्त झा ‘बूच’
Kavita Kosh से
ई अकाल नहि, महाकाल अछि
भूखक ऊक बान्हि नाड़रि सँ
चारे पर ठोकैत ताल अछि...
फूके सँ पताल खड़ङौलक
अनावृष्टिक आगि लगौलक
एहि मंहगी क प्रचंड पसाही सँ-
उनचास बसात जगौलक
हे देखह जड़ि रहल गाम घर
आकाशे भऽ गेल लाल अछि...
भारत आइ भेल अछि लंका
बजि रहल अछि मरणक डंका
बाॅचि सकत एहि वेर विभीषणक
कुटी अछि बड़का शंका
डोरि-डोरि सँ बान्हल,
एहि वेरूक विभीषणक मुंडमाल अछि...
आंगन-आंगन हैया दैया
बहिनक कोर मरै छथि भैया
पूत परेम छाड़ि धरती केॅ
भरि-भरि कऽ धरै छथि मैया
वीसहुँ आँखि ओनारि दसानन
घुटुकि घुटुकि हिलवैत भाल छथि...