अकास धुंधळायोड़ो है
आदमी उफतायोड़ो है
भांगै सगळी ओळखाण
आदमी सतायोड़ो है
मूंढै माथै मुळक रची है
आसूंड़ा लुकायोड़ो है
बिम्ब सै बिखर रिया
दरपण तिड़कायोड़ो है
गुलाब बिस कांटा बणैं
आदमी रो लगायोड़ो है
सुख रो सूरज तड़फड़ावै
सूळी पर चढ़ायोड़ो है
मन रा ताळा ना खुलै
कूंची गुमायोड़ो है
होठां माथै खीरा उछळै
पेट रो भड़कायोड़ो है