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अकेला कौन है जब (मुक्तक) / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

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1
नफ़रतों के रतजगे हैं,नफ़रतों के हैं हवन ।
विषबुझी जीभ उगल रही विषबुझे ही सब वचन।
सुधा जो तुमने बाँट दी, पी गए सब हमसफ़र
ज़हर हिस्से में हमारे आज कर लें आचमन।
2
माना हज़ारों बद्दुआएँ,घोलती होंगी ज़हर।
माना हज़ारों आँधियाँ भी,रोज़ ढाती हैं क़हर।
जब साथ मन में तुम रहोगे,फिर अकेला कौन है?
तुम चलते चलो रुकना नहीं ,होकर रहेगा सहर।
3
रिश्तों के काँटे हर रोज़ चुभाए हैं
आँसू से गीले ये नैन छुपाए हैं
दुनिया की छोड़ो, यह किसकी मीत बनी
हम साथ न छोड़ेंगे ,कहने आए हैं।
4
किसी के अधर की मुस्कान बन जाना।
किसी भीगे कंठ का गान बन जाना।
जिस गाँव शहर में छाया हो अँधेरा।
उसके कूचे का दिनमान बन जाना।
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