भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अकेला / महेन्द्र भटनागर
Kavita Kosh से
अब तो, अरे
कोई याद तक करता नहीं,
आता नहीं !
मृत्यु के आगोश में
ज़िन्दगी खामोश है
अब तो, अरे
कोई गीत
मन रचता नहीं,
गाता नहीं !
वाद्य चुप हैं
कोई स्वर
न बजता है / उभरता है !
जो थे
बीच पथ में खो गये,
जो हैं
थके - हारे / ऊब - मारे
सो गये !
किसको बुलाएँ,
किसको जगाएँ ?
दुनिया अपरिचित हो गयी,
हम बिराने हो गये !
किसके पास जाएँ,
किसे अपना बनाएँ ?
लीन हैं सब
स्वयं में,
अपने हर्ष में
ग़म में !
नहीं कोई रहा अब संग,
ज़िन्दगी बेरंग !