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अकेले मुझको छोड़ न देना / गुलाब खंडेलवाल
Kavita Kosh से
अकेले मुझको छोड़ न देना
यह जग मुझे भुला भी दे पर तुम मुँह मोड़ न लेना
रोग, शोक, चिंता, शंकायें
कितनी भी जीवन में आयें
दीप न आस्था के बुझ पायें
देख काल की सेना
जब झंझा झपटे अंबर से
काँप उठूँ अनजाने डर से
तब डाँड़ें ले मेरे कर से
तुम यह नौका खेना
अकेले मुझको छोड़ न देना
यह जग मुझे भुला भी दे पर तुम मुँह मोड़ न लेना