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अकेले / सुदर्शन प्रियदर्शिनी
Kavita Kosh से
मैंने
अपने से अलग
अपने घावों
अपनी रिसती
बिवाइयों
गले की फाँस बनी
विसंगतियों
दम घोंट
देने वाली
वे सारी
व्यथाओं की
एक पोटली बांध कर
अलग अलगनी पर
टांग दी है
ताकि जब तुम
आओ तो
ले चलो
मुझे अकेले
निःसग
उन सब से
परे
निःस्वच्छ
स्फटिक लोक
में अकेले…