भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अक्टूबर में रेखाचित्र / टोमास ट्रान्सटोमर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जंग के कारण चकत्ते पड़ गए हैं नाव में यह क्या कर रही है यहाँ
समुद्र से इतनी दूर जमीन पर ?
और यह ठंडक में बुझा हुआ एक भारी लैंप है
मगर पेड़ों पर हैं चटकीले रंग : दूसरे किनारे के लिए संकेतों की तरह
मानो लोग आना चाहते हों इस किनारे पर

घर आते हुए मैं देखता हूँ
पूरे लान में मशरूम उगे हुए
वे सहायता के लिए फैली हुई उँगलियाँ हैं किसी ऐसे इंसान की
जो वहाँ नीचे के अँधेरे में
जाने कब से सिसकता रहा है अपने आप में ही
हम पृथ्वी के रहने वाले हैं

(अनुवाद : मनोज पटेल)