अक्तूबर शृंखला : पाँचवीं कविता / लुईज़ा ग्लुक / प्रियदर्शन
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यह सच है कि दुनिया में पर्याप्त सौन्दर्य नहीं है
यह भी सच है कि मैं उसे बहाल करने में सक्षम नहीं हूँ
न ही साफ़गोई है, और यहाँ मैं कुछ काम आ सकती हूँ
मैं काम में लगी हूँ हालाँकि मैं ख़ामोश हूँ ।
संसार का विनम्र सन्ताप
हमें दोनों ओर से बाँधता है,
एक वीथि वृक्षों की क़तार वाली;
हम यहाँ साथी हैं, कुछ न बोलते हुए
अपने ही ख़यालों में ग़ुम ।
वृक्षों के पीछे, लौह
फाटक निजी घरों के
बन्द कमरे,
किसी तरह सुनसान, छोड़े हुए,
मानो यह कलाकार का कर्तव्य
हो कि वह उम्मीद पैदा करे,
मगर कैसे? किस चीज़ से?
यह शब्द ही ख़ुद में
झूठा, एक औज़ार धारणा के
खण्डन का — चौराहे पर
मौसम की सजावटी बत्तियाँ
मैं यहाँ छोटी थी।
अपनी छोटी सी किताब के साथ
सबवे पार करती थी
जैसे ख़ुद को इसे दुनिया से बचा रही हूँ ।
तुम अकेली नहीं हो,
कविता ने कहा,
इस अन्धेरी सुरंग में ।
अँग्रेज़ी से अनुवाद : प्रियदर्शन
और लीजिए, अब पढ़िए अँग्रेज़ी में मूल कविता
Louise Glück
October
5.
It is true there is not enough beauty in the world.
It is also true that I am not competent to restore it.
Neither is there candor, and here I may be of some use.
I am
at work, though I am silent.
The bland
misery of the world
bounds us on either side, an alley
lined with trees; we are
companions here, not speaking,
each with his own thoughts;
behind the trees, iron
gates of the private houses,
the shuttered rooms
somehow deserted, abandoned,
as though it were the artist’s
duty to create
hope, but out of what? what?
the word itself
false, a device to refute
perception— At the intersection,
ornamental lights of the season.
I was young here. Riding
the subway with my small book
as though to defend myself against
the same world:
you are not alone,
the poem said,
in the dark tunnel.