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अक्षर-अक्षर बाँचूँ / नईम

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अक्षर-अक्षर बाँचूँ,
पंकित् पंक्ति जी लूँ।

हैं वो आलेख कहाँ,
जिन्हें घोल पी लूँ?

दिल के मक़सद, दिमाग़ के फितूर,
वैसे मेरी दिल्ली बहुत दूर;

बीज-मंत्र उच्चारूँ,
छाती पर कीलूँ।

बासी हो गए तुम्हारे, मेरे प्रेम-पत्र,
क्षेपक से आँस रहे अल्बम में लगे चित्र;
यात्राएँ स्थगित करूँ,
कहाँ गाड़ियाँ ढीलूँ?

अनब्याही भूलें दुखस्वप्न बनीं,
सूने में तोड़ रही, आबादी मुझे घनी;
वक़्त ने उधेड़े जो
बखिए कैसे सी लूँ?