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अक्सर / डी. एम. मिश्र
Kavita Kosh से
अक्सर देखा गया है
मुस्कराहटों के पीछे
साजिशें काम करती है
और सम्मोहन के पीछे
बदनीयती
अक्सर विषबेल की पत्तियाँ
दूसरी पत्तियों की तरह हरी होती है
और ज़हर अक्सर मीठा होता है
अक्सर औज़ार में भी
प्यार जैसी धार होती है
पर, सहानुभूति बिल्कुल नहीं
किसी ने मुझे चेताया था
पीठ के पीछे इतनी जगह
अक्सर खाली रह जाती है कि
बर्रे अपना छत्ता बना ले
और भनक तक न लगे
चौंकिये नहीं
यह हकीकत है
अक्सर लोग उन हाथों से मारे गये
जिन्हें कभी गुलाब दिया था