अखरहिं अउवा के इहे धनि लिटिया हो पकावे
आहो राम अरन भइंसी के रे दूध, जेंइए लेहु परदेसीय भँवरा।।१।।
खाई-पी के कुँवर जब चलि भेले हे, कि आहो प्रान,
धोतिया पकड़ि के कामिन गे रोवे, कि जइबों कुँअरा गे तोरा संगवा।।२।।
हाँ रे, आधा गउँवा बसे निजा नइहर, गउँवा हे,
हाँ रे, माँझ गउँवा बसे मोर ससुररिया, कि जनि जाहु धनि मोरा संगवा।।३।।
हाँ रे, आधा गाँव बसे निजा नइहर, गउँवा आहो प्रान,
माँझ गउँवाँ बसे ससुररिया, त जइबों कुँवर तोरा संगवा।।४।।