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अख़बार / आरती तिवारी
Kavita Kosh से
मुझे गौर से पढ़ता है
आँखों पर चढ़े नज़र के चश्मे से
सुर्ख़ियों से ताकता है
मेरा निर्विकार चेहरा
भोथरी हो चुकी सम्वेदनायें
मेरे अंदर का मर चुका आदमी
नही देता कोई प्रतिक्रिया
ग़म ख़ुशी या आवेग की
अख़बार पे चस्पा खबरें मात्र खबरें हैं
कोई कौंध नही
मेरी नज़रें तलाशती हैं
बढ़े हुए वेतनमान का स्वीकृत होना
सेल के विज्ञापनों में
छुपी बचत
रिटायरमेंट की आयु सीमा बढ़ाया जाना
और मेरी आँखों में चमकी चालाकी की चमक पढ़
अख़बार रह जाता है भौंचक
अब आदमी अख़बार नही पढ़ता
अख़बार पढ़ता है
आदमी की चालाकी
और हो जाता है उदास