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अगणित मधु प्रणय-केलि-क्षणिकाएं मानस पट पर लहरातीं / प्रेम नारायण 'पंकिल'

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अगणित मधु प्रणय-केलि-क्षणिकाएं मानस पट पर लहरातीं ।
सुधि आती प्रिय क्या रही दशा जब तुमने भेजा था पाती ।
कम्पित अँगुली दृग पट बोझिल पुलकित वपु दक्षिण नयन-स्फुरण ।
उच्छ्वास उष्ण दोलित दुकूल अति अरुणिम अधर जघन कम्पन ।
उर्जस्वित अंगड़ाईयाँ अमित ज्यों फेनिल सरिता बरसाती ।
निस्पंद कीर पिंजर-पालित निष्कंप दीप लौ मुस्काती ।
वह पाती छाती दबा विकल बावरिया बरसाने वाली -
क्या प्राण निकलने पर आओगे जीवन वन के वनमाली ॥२६॥