भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अगर अंदाजे उल्फ़त रास्ता ए आम हो जाता / रंजना वर्मा
Kavita Kosh से
अगर अंदाज़े उल्फ़त रास्ता ए आम हो जाता
ये अपना इश्क भी यारों बहुत बदनाम हो जाता
उसी का नाम जप होता घड़ी हर जागते सोते
निगाहों में अगरचे साँवरे का धाम हो जाता
कभी आता संवरिया जो हमारे दिल की बस्ती में
तड़पते रात दिन दिल को जरा आराम हो जाता
नहीं देता है कोई साथ मुश्किल ग़र पड़े कोई
तुम्हारा नाम लेते तो हमारा काम हो जाता
ग़मे फुरकत में यूँ जलते बहुत दिन हो गए अब तो
जशन तेरे दरश का ही मेरा ईनाम हो जाता
बड़ी शिद्दत से देखी राह दिलवर तेरे आने की
तेरी चौखट पे आना वस्ल का पैगाम हो जाता
दिखे जो नक्शे पा तेरे खुदे पत्थर शिलाओं पे
उन्ही पर सर झुका लेते हमारा नाम हो जाता