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अगर इधर से नहीं तो उधर से आएगी / राम नाथ बेख़बर

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अगर इधर से नहीं तो उधर से आएगी
मकां में रोशनी हर एक दर से आएगी

हवा चली है लिए खुशबुओं को आँचल में
सुकून देगी यक़ीनन जिधर से आएगी

घिरे हैं दुख के घने अब्र मेरे आँगन में
ख़ुशी की रौ किसी दिन फिर सहर से आएगी

अँधेरी रात के दिल में उमीद भरने दो
दिये की रौशनी हर एक घर से आएगी

भले फलों से अभी डालियाँ सजी हैं नहीं
मगर है धूप तो छाया शज़र से आएगी