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अगर औरत बिना संसार होता / गिरधारी सिंह गहलोत
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अगर औरत बिना संसार होता।
वफ़ा का ज़िक्र फिर बेकार होता।
ये किस्से हीर लैला के न मिलते।
हर एक आशिक़ यहाँ बेजार होता।
क़लम ख़ामोश रहता शायरों का
बिना रुजगार के फ़नकार होता।
नहीं फिर जिक्र होठों पर किसी के
नयन जुल्फ-ओ-लब-ओ-रुख़्सार होता।
न करता कोई बातें ग़म ख़ुशी की
किसी को कब किसी से प्यार होता।
सजावट धूल खाती फिर मकाँ की
लटकता आइना ग़मख़्वार होता।
सभी ख़ामोश होती महफ़िलें भी
नहीं फिर रूप का बाज़ार होता।
बहन माशूक मां बेटी ओ बीबी
बिना कोई न रिश्तेदार होता।
'तुरंत ' अब ये हक़ीक़त और जानो
बिना औरत बशर क्या यार होता।