अगर काया मन बन जाये / साधना जोशी
अगर काया भी मन बन जाये
दुनियां की हर खूब सूरती को देख आयें
हर कल्पना सच बन जायें
अगर काया मन बन जाये ।
दुख के घेरे से उड़कर कहीं
खुषियों की वादियों में घूम आये
कभी बुग्यालों में कभी फूलों की घाटियों में
से ऐवरेस्ट की बर्फिली चोटियों को
प्यार से चूम आयें
काष ये काया मन बन जाये ।
मस्त पवन झोंके को लेकर
धरती की हरियाली के साये में
सागर की लहरों पर होके सवार
अम्बर के कोने को छू जाये
अगर ये काया मन बन जाये ।
जिन्दगी में न रुकने का डर हो
दुर्बलता को न सहने का गम हो
चॉद चांदनी के संग करक,े
बसेरा तारों से भरी थाल देख आये,
अगर ये काया मन जैसी बन जाये ।
उत्साह साथी वन जाये
उमंग सभी मन में बस जाये
खुषियों भरकर के जीवन
ये काया मन वन जाये ।