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अगर किसी का साथ मिले तो / रामेश्वर नाथ मिश्र 'अनुरोध'

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अगर किसी का साथ मिले तो अपना जीवन भी सरगम हो ।
दुनिया भर का भी ग़म कम हो ।।

जिसके दर्शन से आँखों की हो जाती है दूर पिपासा ।
 उल्टे पाँव भगा करती है चिंताओं से पूर्ण निराशा ।
सच कहता मैं खोज रहा हूँ बहुत दिनों से ऐसा उपवन;
मिले जहाँ वह फूल कि जिसके सौरभ से जीवन गमगम हो ।
दुनिया भर का भी ग़म कम हो ।।

अपनी अभिरुचि संवादों में जो सार्थक उल्लास भरे हों ।
अपनी पटरी उन लोगों से जो सच्चे संपूर्ण खरे हों ।
जो खटराग अलापा करते उनसे क्या अपना लेना है;
मैं तो उनको चाह रहा हूँ जिनकी बातों में दमखम हो ।
दुनिया भर का भी ग़म कम हो ।।

जब सुनसान अकेलेपन में अंतर में जलती है धूनी ।
मन में उद्वेलन होता है, तन्हाई खलती है दूनी ।
जी कहता तब और नहीं कुछ, अपना भी कोई साथी हो ;
खुशियों के नूपुर की मीठी कानों में बजती छमछम हो ।
दुनिया भर का भी ग़म कम हो ।।

अपनी तो हर चीज सहज है, सरल सहजता जीवन -निधि है ।
इसके सिवा नहीं कह सकता जीवन की क्या और प्रविधि है ।
ग़म खाना औ' कम खाना ही, मैंने तो अब तक सीखा है;
चाहा है अपना यह जीवन दुख के तम में भी उत्तम हो ।
दुनिया भर का भी ग़म कम हो ।।

न जाने कब मीत मिलेगा? मन की मंशा होगी पूरी
कब उर पुर में शांति बसेगी? पूरी होगी चाह अधूरी ।
एक वियोगिन आशा लेकर मैं बैठा हूँ आँख बिछाये;
 जाने कब चाँदनी खिलेगी? पूनम से जीवन चमचम हो ।
दुनिया भर का भी ग़म कम हो