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अगर कुछ दाँव पर रख दें, सफ़र आसान होगा क्या / मदन मोहन दानिश
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अगर कुछ दाँव पर रख दें, सफ़र आसान होगा क्या
मगर जो दाँव पर रखेंगे वो ईमान होगा क्या
कमी कोई भी वो ज़िन्दगी में रंग भरती है
अगर सब कुछ ही मिल जाए तो फिर अरमान होगा क्या
मगर ये बात दुनिया की समझ में क्यों नहीं आती
अगर गुल ही नहीं होंगे तो फिर गुलदान होगा क्या
बगोला-सा कोई उठता है क्यों रह-रह के सीने में
जो होना है तआल्लुक का इसी दौरान होगा क्या
कहानी का अहम् किरदार क्यों ख़ामोश है दानिश
कहानी का सफ़र आगे बहुत वीरान होगा क्या