भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अगर खुद से हमारी आप ही पहचान हो जाये / रंजना वर्मा
Kavita Kosh से
अगर खुद से हमारी आप ही पहचान हो जाये
समझिये आदमी यह आज का इंसान हो जाये
लड़ें हम किसलिये मजहब धरम का नाम ले लेकर
अगर भगवान में शामिल स्वयं रहमान हो जाये
कहीं हिन्दू के मंदिर हैं कहीं मस्जिद या गिरजाघर
सभी मे बस रहा है जो वो बस भगवान हो जाये
करें हम वन्दना माँ की इबादत आप भी कर लें
यही धरती हमारा धर्म अरु ईमान हो जाये
हमेशा ही खुले दिल से किया सम्मान है हम ने
अगर दुश्मन भी आकर के कभी मेहमान हो जाये
बढ़े यदि हाथ कोई तो लगा लें हम गले बढ़ कर
दिखाये आँख कोई नाश को तूफ़ान हो जाये
वतन का कर्ज है सब पर उतारें यह जरूरी है
भले बलिदान उस पर अब हमारी जान हो जाये