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अगर जमीं है कहीं आसमान तो होगा / रंजना वर्मा
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अगर जमीं है कहीं आसमान तो होगा
यहाँ वहाँ न सही पर जहान तो होगा
नहीं टपकता कोई आसमान से यारब
हरिक बशर का कोई खानदान तो होगा
गये थे टूट जो रिश्ते हैं जुड़ गये लेकिन
पड़ी जो गाँठ है उसका निशान तो होगा
न है वकील न मुंसिफ न ही गवाह कोई
जो सच कहे वो हमारा बयान तो होगा
सफ़र ये जीस्त का लंबा है गुज़र जायेगा
मुड़ेगी राह जहाँ इम्तेहान तो होगा
गया था फेर के मुँह तू हमारे कूचे से
ये दर्द अब दिलों के दरमियान तो होगा
मिटा रहा है उमड़ कर निशान साहिल के
नया नया है समन्दर उफान तो होगा
इसी उमीद पे भटका किये उमर सारी
किसी गली में तुम्हारा मकान तो होगा
जलायी जिसने कलेजे में आग उल्फ़त की
ख़ुदा वो मुझ पे कभी मेहरबान तो होगा