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अगर तुमने मुझे रस्ते से भटकाया नहीं होता / शेष धर तिवारी
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अगर तुमने मुझे रस्ते से भटकाया नहीं होता
तो मैंने मंजिले मक़सूद को पाया नहीं होता
किसी की मुफलिसी पर रूह गर कोसे तो समझाना
हर इक इंसान की किस्मत में सरमाया नहीं होता
अगर मैं जानता डरते हो मुस्तकबिल से तुम मेरे
तो मीठे बोल से धोखा कभी खाया नहीं होता
तुम्हारा कल हमारे आज में पैबस्त ही रहता
तो मेरा आज मुझको इस तरह भाया नहीं होता
झुका था आसमां, बढ़ कर ज़मीं गर बांह फैलाती
धुंधलका दरमियां उनके कभी छाया नहीं होता