भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अगर तुम पूछो / शहंशाह आलम

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अगर तुम पूछो
कि आदमी को
किस चीज़ से
ज़्यादा खौफ़ खाना चाहिए
शोर से कि सन्नाटे से
मैं कहूँगा शोर से
इसलिए कि
शोर हम दोनों को पसंद नहीं है

अगर तुम पूछो
कि तुम जो कुछ रोज़ हॉस्पिटल में रहीं
तो मैं तुम में उलझा रहा कि अपनी नज़्म में
मैं कहूँगा नज़्म में, जिसे लिखकर
तुम्हारे नाम करना चाहता था

अगर तुम पूछो
कि मुझे बारिश के दिन अच्छे लगते हैं
कि सर्दियों के
मैं कहूँगा दोनों
क्योंकि दोनों ही मौसमों में
हमारे दुश्मन हमसे ईर्ष्या करते हैं

कोई महंगा तोहफ़ा ख़रीदने से अच्छा है
हम कबाड़िया की बात मान लें
और नज़्मों की कुछ किताबें ख़रीद लें

अगर तुम पूछो
कि नज़्मों की किताबें ख़रीदने से
बेहतर क्या हो जाएगा
मैं कहूँगा
नज़्मों की किताबों की वजह से
तन्हा-तन्हा
उदास-उदास
हमारे दिन हम गुज़ार सकेंगे.