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अगर तुम साथ हो जाओ / हरिवंश प्रभात

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अगर तुम साथ हो जाओ, बहकना बंद कर देंगे।
वफ़ा की राह में हरदम भटकना बंद कर देंगे।

नहीं आँखों में शबनम सुबह की होगी यकीं जानों,
मेरी यादों की किरणें जब चमकना बंद कर देंगे।

बिना बरसे ही बादल साफ़ होगा देख भी लेना,
अगर हम अपनी ज़ुल्फ़ों को झटकना बंद कर देंगे।

मुहब्बत की वह रस्सी से, अगर खिंचोगे तू दिल में,
पतंगों की तरह रस्ता भटकना बंद कर देंगे।

वहाँ वीरान-सा मंज़र नज़र ‘प्रभात’ आएगा,
जहाँ पर शायरी का गुल महकना बंद कर देंगे।