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अगर मुजरों में बिकनी शायरी है / प्रेम भारद्वाज
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अगर मुजरों में बिकनी शायरी है
सही कहने की किसको क्या पड़ी है
हैं बाहर गर अँधेरे ही अँधेरे
ये क्या अन्दर है जिसकी रौशनी है
यूँ ही चर्चे यहाँ फ़िरदौस के हैं
बनेगा देवता जो आदमी है
हुई ख़ुश्बू फ़िदा है जिस अदा पर
बला की सादगी है ताज़गी है
करे तारीफ़ अब दुश्मन भी अपना
हुई जो आप से ये दोस्ती है
समुन्दर के लिए नदिया की चल—चल
है उसकी बन्दगी या तिश्नगी है
ज़माना प्रेम के पीछे पड़ेगा
महब्ब्त से पुरानी दुश्मनी है.