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अगर सच है कहो क्यों कँपकपाहट / ब्रह्मदेव शर्मा
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					अगर सच है कहो क्यों कँपकपाहट, 
नहीं अच्छी किसी से फुसफुसाहट। 
हवायें कर रही हैं काम अपना, 
चमन में आँधियों की सरसराहट। 
दफन है बात दिल की बीच दिल के, 
सदा हावी रही है हिचकिचाहट। 
तुम्हारे गेसुओं में कैद होकर, 
घटाओं में ग़ज़ब की घड़घड़ाहट। 
उड़ा देती हमारी नींद सारी, 
तुम्हारी याद की इक धड़धड़ाहट। 
खुशी कैसे बयाँ आँखें करें वे, 
नहीं देखी जिन्होंने खिलखिलाहट। 
गधों की भाँति घोड़े हो गये हैं, 
बयाँ है खच्चरों की हिनहिनाहट। 
सुना है शेर खुद को बोलते हो, 
कहाँ से सीख आये मिनमिनाहट। 
सलीके से रखो तुम बात अपनी, 
किसी हल तक न पहुँची मिसमिसाहट। 
हुनर ये ही बचा है पास अपने, 
बता दें कौन है-है किसकी आहट।
 
	
	

