भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अगर हमारे ही दिल मे ठिकाना चाहिए था / शकील जमाली

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अगर हमारे ही दिल मे ठिकाना चाहिए था
तो फिर तुझे ज़रा पहले बताना चाहिए था

चलो हमी सही सारी बुराईयों का सबब
मगर तुझे भी ज़रा सा निभाना चाहिए था

अगर नसीब में तारीकियाँ ही लिक्खीं थीं
तो फिर चराग़ हवा में जलाना चाहिए था

मोहब्बतों को छुपाते हो बुज़दिलों की तरह
ये इश्तिहार गली में लगाना चाहिए था

जहाँ उसूल ख़ता में शुमार होते हों
वहाँ वक़ार नहीं सर बचाना चाहिए था

लगा के बैठ गए दिल को रोग चाहत का
ये उम्र वो थी कि खाना कमाना चाहिए था