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अगर / राजेश शर्मा ‘बेक़दरा’
Kavita Kosh से
अगर समय ने
भिक्षादान की तरह
तुमसे मिलने का
अवसर दिया
तो कृपया मुझसे
मिल लेना
न केवल मिलना
बल्कि मुझे पढ़ना
किसी प्रेम कविता की
पंक्ति की भाति
जो प्रतीक्षारत रही
उस अहिल्या की तरह
जो खोजती रही अपने राम को
सिर्फ मुक्त होने के लिये
हो सके तो मुझे
उसी तरह मिलना
उसी तरह पढ़ना...
जानता हूँ पढ़ ही लोगे