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अगर / श्रीप्रसाद
Kavita Kosh से
अगर नहीं यह सूरज होता
तो होता अँधियारा
अगर न आता चाँद, न लगता
आसमान यह प्यारा
अगर नहीं ये तारे होते
चमकीले-चमकीले
आसमान में कहाँ चमकते
झिलमिल नीले-पीले
और अगर ये रंगबिरंगे
फूल न खिलते होते
तो क्या होता, हम फूलों की
यह सुंदरता खोते
बेलें होतीं नहीं, न होते
पेड़ झूमने वाले
पर्वत होते नहीं कहीं
आकाश चूमने वाले
नदियाँ, ताल और झरना भी
नहीं एक भी होता
निर्मल पानी का पत्थर से
कहीं न बहता सोता
अगर नहीं होते इतने पशु
पक्षी कहीं न गाते
तो हम कैसे इस दुनिया में
अपना मन बहलाते
इस दुनिया में सब-कुछ ही है
लगती इससे प्यारी
कौन देख पाता वरना ये
सुंदर दुनिया सारी।