अगली सदी की ओर
अंतिम पहर में 21वीं सदी का बीज
उस नन्हें पौधे में अंकुरा रही है
खाद पानी के रूप में वह
मनुज, मांस और खून सरसा रही है
20वीं सदी के वट वृक्षों के घने छाँव तले
एक चाकू, एक छूरी, एक बंदूक़
ढेर सारे कारतूस, अणुबम, परमाणु शक्ति
और बारूद का महल बना गई है
जिसके सिरहाने में क्रोध, अहम्
स्वार्थ एवं भौतिकता के तकिए लगा गई है। 
समय चंचल बालक-सा चुहल करता
तेज धावक-सा भागता जा रहा है। 
आध्यात्म मठाधीश हो
आराम फ़रमाने लगा है
थका पराभव अस्थि पंजर बन
सिरहाने खड़ा हिल रहा है। 
विनाश तांडव के बाद क्या फिर? 
नवीन रथ पर सवार बारह घोड़ों की
सवारी करता दिनकर
इसमें नवजीवन का आह्वान करेगा? 
आज की शापित रश्मियाँ
शांतिसिक्त नवौढ़ा बनेगी? 
या यथावत स्थिति बनी रहेगी?