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अगहन - ४ / ऋतु-प्रिया / चन्द्रनाथ मिश्र ‘अमर’
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दुलुकि दुलकि चलय चालि लादल सिर बोझ रे!
झमकि जाय कृषक - बधू ताकि बाट सोझ रे!
मकुलित मानस - सरोज
आन्दोलित युग उरोज
भड़कछ कसि बान्हल दुहु आँचर केर छोर रे!
गति तरंग गंगा मे उछिलल हिलकोर रे!
पुरल सकल मनक आश
शशि-मुख पर प्रिय-प्रकाश
मन हुलास भरल देखि भरल पुरल चास रे!
भेटि गेल सिद्धि मेटि गेल सब पियास रे!
अयला जखने हेमन्त
भेल सकल दुखक अन्त
कन्त जकर तपल एहि हेतु चारि मास रे!
ताहि पहुक ध्यान-लीन धनिक श्बास-श्वास रे!
पहुँचल रवि क्षितिज-छोर
नगन गगन केर कोर
मगन मौलि श्री - समान ओलरल ई धान रे!
कोन भागमन्ति केर गाबि मधुर गान रे!