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अगहन - ५ / ऋतु-प्रिया / चन्द्रनाथ मिश्र ‘अमर’
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मधुर मिहिर झिहिर झिहिर बहय मृदु समीर रे!
सिहरि सिहरि जाय पुलक भरल लघु-शरीर रे!
‘अन धन लक्ष्मी’क राज
बाध बोन मे विराज
साज बाज साधि धाजि चलल दल किसान रे!
सान सँ कटत धान मचल घमासान रे!
झलकि रहल सगर खेत
लाल, पीत, असित, श्वेत
रंग ओ विरंग शीश लैत लहालोट रे!
झूमि झूमि काटि रहल पैघ ओर छोट रे!
झन झन झन स्वर-तरंग
जन-मन मे नव-उमंग
संग संग विरह - तान भरल स्वर-बितान रे!
मुखर दिशा, प्रखर निसाँ-मतल मन उतार रे!
हरल ककर ज्ञान प्रान
रहल ककर एक ध्यान
आसमान बीच उदित आइ पूर्ण चान रे!
कृषक वृन्द लादि चलल धान सिर-मचान रे!