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अग़र तुम लौट आओ तो वही ख़ुशबू बिखर जाये / हरकीरत हीर
Kavita Kosh से
अग़र तुम लौट आओ तो वही ख़ुशबू बिखर जाये
खयालों में वही मीठी, हसीं मुस्कान भर जाये
इशारों से, अदाओं से, निगाहों से, बहानो से
किया इज़हार मैंने जो, ज़हे सपना सँवर जाये
मुझे तू माफ़ करना रब, कभी दर आ नहीं पाई
ख़ुदा उसको जो माना है कोई कैसे उधर जाये
दवा लिख दूँ, नवा लिख दूँ, ख़ुदा लिख दूँ , फ़िदा लिख दूँ
बता तू क्या लिखूँ जो तेरे दिल में ही उतर जाये
कहाँ तक ढूँढ कर आती नज़र कैसे बताऊँ मैं
नहीं पैग़ाम तेरा औ' न कोई भी ख़बर आये
बसा लो धड़कनों में आज़ साँसों में समा लो तुम
बची जो ज़िंदगी है वो, न यादों में गुज़र जाये
लगी ये तिश्नगी दिल की, बुझेगी अब नहीं जानम
बना लो 'हीर' को अपना सकूँ दिल में ठहर जाये