भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अगूंण कानी आंख / सांवर दइया
Kavita Kosh से
चौफेर रात रो राज
दडूकै डाकी अंधारो
थर-थर धूजतो म्हैं
रात काटूं
अगूण कानी आंख करियां
चिडकल्यां री चीं-चीं सुण
जी में जी आवै
होळै-होळै भाख फाटै
अगूण में पसरण लागै उजास….