भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अग्नि-गान / केदारनाथ मिश्र 'प्रभात'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

धधक ओ री प्रलयंकर-आग!
धधक ओ अरी भयंकर आग!
धधक ज्वालाएँ फैलाकर
धधक झंझा से बल पाकर
धधक धू-धूकर धक-धक कर
धधक बढ़ती ही जा ऊपर

धधक कर बुला प्रचंड-निदाघ!
धधक ओ अरी भयंकर-आग!

धधक झुलसादे नीलांबर
धधक पिघलादे शिला-शिखर
धधक उमड़ादे अंबुधि घोर
फैलादे ज़हर अघोर

धधक कर मचा अनोखा फाग!
धधक ओ अरी भयंकर-आग!

धधक सैनिक के मन-वन में
धधक विद्रोही-जीवन में
धधक अंतर में प्राणों में

धधक कर उठा प्रलय का राग!
धधक ओ अरी भयंकर-आग!

धधक खूनी-आँखों में क्रुद्ध
धधक आशाओं में विक्षुब्ध
धधक रण-रक्तोल्लासों में
धधक श्वासों-प्रश्वासों में

धधक उसकादे यौवन-नाग!
धधक ओ अरी भयंकर-आग!

धधक खौलादे रुधिर-प्रवाह
धधक जानिगल दानवी-आह
धधक फड़कादे युग-भुज-दण्ड
धधक भड़कादे भाव उदण्ड

धधक ओ री प्रलयंकर आग!
धधक ओ अरी भयंकर-आग!
9.1.29