भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अग्नि-पुरुष / सूर्यकान्त ठाकुर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हम अग्निपुरुष संसारक छी।
युगसँ अभिशापित जीर्ण जगक
हम ज्वाल-किरण संहारक छी।
जड़ता जगतीमे व्यापि रहल,
मृत्युंजय हम छी पीबि गरल,
संसार हलाहलसँ उबरत
युग-पीड़ित मानवताक हेतु
हम क्रान्तिक धार-प्रवाहक छी।
हम अग्नि पुरुष संसारक छी।
अविकसित कुसुम नित झड़ि जाइछ,
करुणा रौद्रक पद पड़ि जाइछ,
अछि कोटिक कोटि निरन्न नग्न,
दोसर दिस तरुणी-सुरा-मग्न
नवज्योति बारि शलभक अन्तक
हम अग्निक पुंज प्रसारक छी।
हम अग्नि पुरुष संसारक छी।