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अग्नि-5 / मालचंद तिवाड़ी
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जलाती नहीं
पकाती है अग्नि
आंवें में घट
धरती में बीज
देह में आत्मा
अग्नि रचती है
जल-थल-नभ-वायु
घट में
बीज में
आत्मा में
खोजती हुई रास्ता
अपनी भास्वरता का !
अनुवादः नीरज दइया