अग्नि के गर्भ में पला होगा,
शब्द जो श्लोक में ढला होगा।
दृग मिले कालिदास के उसको,
अश्रु उसका शकुन्तला होगा।
है सियासत विराट-नगरी-सी,
पार्थ इसमें बृहन्नला होगा।
दर्प ही दर्प हो गया है वो,
दर्पनों ने उसे छला होगा।
भाल कर्पूरगौर हो बेशक,
गीत का कंठ साँवला होगा।