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अघोरी सा-जीवन / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
Kavita Kosh से
87
घोर अमा है
अघोरी सा-जीवन
अपना मन।
88
जला दो ग्रन्थ
जो कुचलें प्रेम को
घृणा ही बोएँ ।
89
नभ की स्मित
छिटकी रात भर
नन्हे शिशु-सी।
90
हाँफ़ती आई
शत- शत उर्मियाँ
पग पखारें।
91
वासना- कीट
करता बदरंग
जीवन-रंग।
92
क्रूर का जाप
बनता अभिशाप
विष ही रोपे।
93
आग ही आग
उगलती है जीभ
पूजा के बाद।
94
शंका है सर्प
न सोए ,न सोने दे
नरक- द्वार।
95
दर्द न पूछो,
पाहन बन रहो
पूजे जाओगे।
96
प्रभु ने भेजे
अमृत-घट भरे
पीते न बने।