भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अचाणचक कीं दिख जावै / सांवर दइया
Kavita Kosh से
अचाणचक कीं दिख जावै
कांई ठा कुण लिख जावै
नित चालै लुक-मींचनी
सांमै आवै छिप जावै
गाडै में छाजलो भार
मन मानै तो धिक जावै
औ सौदो सुणो प्रीत रो
बिना मोल मन बिक जावै
मिजळी ओळूं रो कांई
आवै तो आ नित आवै