अचार / राग तेलंग
तेज़ी से बेस्वाद होती जा रही
इस साइबर-मशीनी दुनिया में
आख़िर में
आड़े वक़्त की तरह
काम आएगा
कोई अचार
जिसे निकाला जाएगा
पोटली में से
कंक्रीट के घने जंगल के बीच
नीम अकेले में
तपती धूप में
भारी शोर के बीच
साथ पानी होगा खरीदा हुआ
जिसे बचा-बचाकर पिया जाएगा
ठगों की प्यास को कोसते हुए
रोटी के हर दो कौर के बाद
अचार की उपस्थिति में
अचार बनाने के नुस्खे
आख़िरी समीकरण होंगे
पाक-कला के
जो लुप्त होने के पहले
दर्ज़ करेंगे
अपना छोटा-सा प्रतिरोध
फास्ट-फूड के समुद्र में
तिनके की तरह
अचार खाने के बाद
जब देह में घुलेगी गंध
उन खनखनाते हाथों की
जो दादी-नानी,माँ,बहन,पत्नी,बेटी तक
एक यात्रा के तहत
पहुँचे थपथपाने
थके हुए का कांधा
और न जाने
किन-किन नामालूम रस्तों से चलकर
हम तक पहुँचा अचार
ठीक उसी वक़्त
जब लगी थी तेज़ भूख और
अनमना सा हो रहा था मन
बगैर उसके कि
किसी ने पूछ ही लिया
‘अचार चाहिए ? ’
कितना नमक
कितना गुड़
कितने मसाले
कितना-कितना सब कुछ साथ-साथ
जो समझ गया
वो पा गया
जीवन का फ़लसफ़ा
अचार रचते-रचते ।