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अचेत के चेत / कुंज बिहारी 'कुंजन'

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जतने बड़ा मकान बनत बा जतने चेत भइल जाता।
ततने अदिमी के भीतर के, जगह सकेत भइल जाता।
बढ़ा बढ़ा के विद्यालय
मिहनत सउसे बरबाद भईल
फूल फुलाईल ना, बगिया
ई कांटे से आवाद भइल
कागज, कलम, सियाही पोथी
बेरथ कूल्ही खाद भइल
बहरे लोहा के बनूक ना
भितरे से फौलाद भइल
दिल दिमाग आदिमी के जइसे उसर खेत भइल जाता॥
जतने बड़ा मकान बनत बा, जतने चेत भइल जाता।
नैतिकता के बा सबूत कि
रोजे बढ़त महकमा बा
रोजे बढ़े वकील मुअक्किल
रोजे बढ़त मुकदमा बा
काबा काशी, के बढ़ कच
हरिये में कहमी कहमा बा
झूठा जाली कागज से
फुरसत ना एको लहमा बा
कागज के कीमत लागत बा, अदिमी सेत भइल जाता॥
जतने बड़ा मकान बनत बा, जतने चेत भइल जाता।
रोजे होता खोज दवा के
रोजे होता अविष्कार
रोजे नया चिकित्सा के दल
बढ़ते जात हार के हार
गांव गांव में किलनिक चाहे
केमिस्टन के छनल बाजार
टानिक अउर बिटामिन, सूई
के, के नइखे सेवनिहार
तबहु मुंह अदमी के, खास परेत भइल जाता
जतने बड़ा मकान बनत बा, जतने चेत भइल जाता॥
नया योजना बना बना के
बीचे में भहरा जाला
कवनों चीज कहां रख देला
रख के फेनु भुला जाला
आंख कान रहते रस्ता में
चलते ठोकर खा जाला
बदहोशी में आपन दीया
अपने हाथ बुता जाला
कुंजन जन जन के मन दिन-दिन अउर अचेत भइल जाता॥
जतने बड़ा मकान बनत बा, जतने चेत भइल जाता॥