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अच्छा लगता है / पवन कुमार मिश्र
Kavita Kosh से
अकेले में तुम्हारी याद आना
अच्छा लगता है,
तुम्ही से रूठना तुमको मनाना
अच्छा लगता है ।
धुन्धलकी शाम जब मुंडेर से
पर्दा गिराती है,
सुहानी रात अपनी लट बिखेरे,
पास आती है,
तुम्हारा चाँद सा यूँ छत पे आना,
अच्छा लगता है ।
फ़िज़ाओं में घुला रेशम नशीला
हो रहा मौसम,
ओढ़कर फूल का चादर सिमटती
जा रही शबनम,
हौले से तुम्हारा गुनगुनाना
अच्छा लगता है ।
अकेली बाग़ में बुलबुल बिलखती है
सुलगती है,
रूमानी चांदनी मुझपर घटा बनकर
पिघलती है,
तुम्हारा पास आना मुसकराना
अच्छा लगता है ।
अकेले में तुम्हारी याद आना
अच्छा लगता है ।